विटामिन डी को “सन शाइन विटामिन” कहा जाता है, क्योंकि इसका निर्माण हमारी त्वचा द्वारा तब होता है, जब वह सूर्य के प्रकाश के संपर्क में आता है। यह अनुमान लगाया गया है कि 70 प्रतिशत से अधिक भारतीय धार्मिक एवं सांस्कृतिक कारणों और असंतुलित आहार के कारण विटामिन डी की कमी के शिकार हैं।
विटामिन डी की भूमिका
विटामिन डी आपकी मांसपेशियों को संचालित करने में, तंत्रिकाओं को संदेश प्रसारित करने में और प्रतिरक्षा प्रणाली को संक्रमण से लड़ने में सहायता प्रदान करता है। लेकिन इसकी सबसे महत्वपूर्ण भूमिकाओं में से एक यह है कि, विटामिन डी शरीर को कैल्शियम अवशोषित करने में सहायता प्रदान करता है। यदि आपको पर्याप्त मात्रा में विटामिन डी नहीं मिलता है, तो आपका शरीर कैल्शियम की कमी को पूरा करने के लिए आपकी हड्डियों से कैल्शियम खींच लेता है।
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वयस्कों में, यह ऑस्टियोपोरोसिस का कारण बन सकता है, जिसके कारण हड्डियाँ कमज़ोर और नाज़ुक हो जाती हैं, जिससे फ्रैक्चर होने का खतरा बढ़ जाता है। बच्चों में, विटामिन डी की कमी से रिकेट्स हो सकता है। यह एक ऐसी बीमारी है जिसके कारण दाँत और कंकालीय विकृति, हड्डियों में दर्द एवं कोमलता और शारीरिक विकास का अवरुद्ध होना जैसे लक्षण दिखाई देते हैं। वास्तव में 20 वीं शताब्दी के आरम्भ में रिकेट्स के प्रभावी उपचार की खोज करते समय ही वैज्ञानिकों ने विटामिन डी की खोज की थी।
पिछले कुछ वर्षों में हुए शोध के अनुसार यह पाया गया कि विटामिन डी की कमी के कारण उच्च रक्तचाप, हृदय रोग, कैंसर और तनाव जैसी बीमारियों की संभावना बढ़ जाती है। हालांकि इन निष्कर्षों को प्रमाणित करने के लिए और अधिक अध्ययन की आवश्यकता है।
विटामिन डी के स्रोत
प्राकृतिक रूप से बहुत कम खाद्य पदार्थों में विटामिन डी पाया जाता है। इस विटामिन के मुख्य स्रोतों में मछली के यकृत के तेल और वसायुक्त मछलियाँ जैसे सैलमन, मैकेरल और ट्यूना हैं। फोर्टिफाइड दूध में विटामिन डी की थोड़ी मात्रा होती है, लेकिन यह दूध भारत में बहुत कम मात्रा में उपलब्ध है। आप पनीर और अंडे की ज़र्दी से भी विटामिन डी की थोड़ी मात्रा प्राप्त कर सकते हैं।
जब आपकी त्वचा सूर्य की पराबैंगनी बी (यूवीबी) किरणों के संपर्क में आता है तो वह विटामिन डी का निर्माण करता है, हालांकि यूवीबी के संपर्क में आने पर विटामिन डी के उत्पादन की क्षमता कई चीज़ों पर निर्भर करती है। इन चीज़ों में आपकी आयु, आपकी त्वचा का रंग, कपड़ों से कितनी त्वचा ढकी है, आपने सन-स्क्रीन लगाया है या नहीं, जहाँ आप रहते हैं वहाँ का मौसम, और दिन में कितना समय और किस समय आप बाहर रहते हैं, सम्मिलित हैं।
भारत में विटामिन डी की कमी
यह अनुमान लगाया गया है कि भारत में 70 प्रतिशत से अधिक लोगों में विटामिन डी की कमी है। यह काफी आश्चर्यजनक है क्योंकि भारत में मानसून के महीनों को छोड़कर पूरे देश के अधिकांश हिस्सों में तेज़ धूप निकलती है। हालांकि भारतीयों में विटामिन डी की कमी के कई कारण हैं:
त्वचा का रंग: भारतीयों के गहरे रंग की त्वचा में मेलेनिन की मात्रा अधिक होती है, जो प्राकृतिक सन-स्क्रीन के रूप में कार्य करती है जो शरीर द्वारा निर्मित विटामिन डी की मात्रा को कम कर देती है।
सांस्कृतिक कारण: सामाजिक और सांस्कृतिक प्रथाओं के कारण अधिकतर भारतीय सार्वजनिक जगहों पर अपने शरीर को ढक कर रखते हैं, जिसके कारण शरीर का अधिकतर भाग सूर्य के संपर्क में नहीं आ पाता जिसके परिणामस्वरूप शरीर द्वारा निर्मित होने वाले विटामिन डी की मात्रा कम हो जाती है।
खाने की आदतें: अधिकतर भारतीय शाकाहारी हैं जिसके कारण वे वसायुक्त मछली नहीं खाते जो विटामिन डी के सबसे अच्छे स्रोतों में से एक है। विटामिन डी युक्त अन्य खाद्य पदार्थ सीमित मात्रा में हैं और अधिकतर भारतीयों की पहुँच से दूर हैं। इसके अतिरिक्त कई पश्चिमी देशों में व्यापक रूप से प्रचलित फोर्टिफाइड दूध और विटामिन डी युक्त अन्य खाद्य पदार्थ भारत में आसानी से उपलब्ध नहीं हैं।
आपका शरीर भी विटामिन डी बनाता है जब आपकी त्वचा सूर्य की पराबैंगनी बी (यूवीबी) किरणों के संपर्क में आती है। हालांकि यूवीबी के संपर्क में आने पर विटामिन डी के उत्पादन की क्षमता कई चीज़ों पर निर्भर करती है। इन चीज़ों में आपकी आयु, आपकी त्वचा का रंग, कपड़ों से कितनी त्वचा ढकी है, आपने सन-स्क्रीन लगाया है या नहीं, जहाँ आप रहते हैं वहाँ का मौसम, और दिन में कितना समय और किस समय आप बाहर रहते हैं, सम्मिलित हैं।
कमी को रोकना –
जैसा कि अधिकतर भारतीयों के लिए पर्याप्त मात्रा में धूप ले पाना संभव नहीं है, और विटामिन डी से भरपूर खाद्य पदार्थों की सीमित उपलब्धता और महँगा होने के साथ-साथ शाकाहारी लोगों द्वारा इन खाद्य पदार्थों का सेवन न कर पाना जैसी समस्याएं हैं, इसलिए इन लोगों के अच्छे स्वास्थ्य के लिए सप्लीमेंट और फोर्टिफाइड खाद्य पदार्थ आवश्यक हैं। विटामिन डी कुछ दवाओं के साथ घुलनशील है और चूंकि यह वसा में घुलनशील है, इसलिए विटामिन डी आपके यकृत और वसा ऊतकों में संचित होता है। यदि आप बहुत अधिक विटामिन डी लेते हैं तो समय के साथ यह विषाक्त पदार्थों का निर्माण कर सकता है। इसलिए, विटामिन डी या अन्य सप्लीमेंट लेने से पहले अपने डॉक्टर से सलाह ज़रूर लें।